Aap Jaisa Koi
ज़िंदगी की भीड़ में कभी-कभी कोई ऐसा मिलता है, जो दिल के दरवाज़े पर दस्तक देता है, और फिर पूरी कायनात जैसे रुक सी जाती है, कुछ ऐसा ही हुआ कबीर के साथ, एक ऊँची इमारत के शीशों के पीछे छुपा वो आदमी, जिसने अपनी ज़िंदगी को सिर्फ किताबों और शतरंज की बिसात में बांध रखा था, दिन रात एक जैसे – कॉफ़ी का वही कप, कंप्यूटर की स्क्रीन पर वही कोड, और दिल में वही सन्नाटा, पर फिर एक दिन अचानक उसकी दुनिया बदल जाती है, जब एक महकती हुई, सुनहरी रोशनी की तरह उसकी ज़िंदगी में आती है इवा – नीली आँखों में समंदर सी गहराई, और मुस्कुराहट में वो सुकून जो कबीर ने बरसों से नहीं देखा था, पहली मुलाकात एक आर्ट गैलरी में होती है, कबीर अपनी किताबों की दुनिया से निकला, बस यूँ ही हवा खाने, और इवा अपनी कला की नुमाइश में – एक पेंटिंग के सामने खड़े होकर दोनों की नज़रें मिलती हैं, कुछ पल के लिए वक्त थम सा जाता है, इवा कहती है “तुम भी अकेले आए हो?”, कबीर मुस्कुराता है, मगर जवाब नहीं देता, उसकी आँखों में कुछ ऐसा है जो इवा को खींच लेता है, और यहीं से शुरू होती है उनकी कहानी – धीरे-धीरे बढ़ती हुई, खामोशियों में पनपती हुई मोहब्बत, इवा के लिए कबीर एक रहस्य था – उसके चुप रहने में भी कहानियाँ थीं, उसके मुस्कुराने में भी गहरे ज़ख्म, और कबीर के लिए इवा जैसे रौशनी की किरण थी उस अंधेरे कमरे में, जहाँ उसने अपने दिल को कैद कर रखा था, दिन गुजरते हैं, मुलाकातें बढ़ती हैं – कभी कैफ़े में, कभी लाइब्रेरी में, कभी उस पुराने पुल पर जहाँ शाम को सूरज डूबता है और दोनों साथ खड़े देखते हैं, इवा कहती है “तुम्हारी खामोशी मुझे डराती है”, कबीर पहली बार धीरे से कहता है “क्योंकि मैंने बहुत कुछ खोया है, इसलिए बोलने से डरता हूँ”, इवा उसका हाथ पकड़ती है, कहती है “मुझे डर नहीं लगता”, कबीर की आँखें भीग जाती हैं, लेकिन फिर भी वो इवा को सब कुछ बताता नहीं, उसके दिल में एक राज़ है – एक पुरानी मोहब्बत, जो अधूरी रह गई, एक हादसा जिसने उसके दिल के हिस्से तोड़ दिए, पर इवा का प्यार उसे धीरे-धीरे जीना सिखाता है, वो हंसना सीखता है, इवा के साथ बारिश में भीगता है, उसके लिए गिटार बजाता है, और एक शाम इवा के लिए अपनी दिल की किताब खोल देता है, इवा सुनती है, और कहती है “मुझे फर्क नहीं पड़ता, मैं आज के कबीर से प्यार करती हूँ”, कबीर उसे देखता है, और पहली बार कहता है “I love you, इवा”, मगर जैसे हर प्यार की कहानी में किस्मत अपनी चाल चलती है, इवा को अचानक अपने मुल्क वापस जाना पड़ता है – एक बीमार माँ, एक टूटा हुआ घर, और दोनों के बीच हज़ारों मील की दूरी, कबीर एयरपोर्ट पर उसे छोड़ने आता है, इवा कहती है “वादा करो इंतज़ार करोगे”, कबीर कुछ नहीं कहता, बस उसकी आँखों में देखता है, इवा की आँखों से आंसू गिरते हैं, वो प्लेन की सीढ़ियाँ चढ़ती है, कबीर उसे जाते हुए देखता है, मगर इस बार रोता नहीं, क्योंकि अब उसके पास इवा की मोहब्बत की ताक़त है, महीने गुजरते हैं, दोनों चैट पर बातें करते हैं, वीडियो कॉल्स, मगर दूरी अपना असर दिखाती है, इवा के पास ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती हैं, कबीर फिर से अकेलापन महसूस करता है, उसके गाने फीके पड़ जाते हैं, मगर वो हार नहीं मानता, एक दिन इवा की माँ की तबीयत बिगड़ जाती है, इवा टूट सी जाती है, कबीर उसे हौसला देता है, कहता है “मुझे नहीं पता कल क्या होगा, पर मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ”, इवा मुस्कुराती है, मगर फिर कहती है “कबीर, मैं वापस नहीं आ पाऊँगी”, कबीर का दिल टूटता है, मगर वो कुछ नहीं कहता, इवा की माँ गुजर जाती है, और इवा उसी शहर में रुक जाती है जहाँ उसकी यादें हैं, कबीर फिर अकेला हो जाता है, मगर वो इवा से किया वादा निभाता है – इंतज़ार करता है, अपने गानों में, अपनी कहानियों में, और अपने ख्वाबों में, साल गुजरते हैं, कबीर की किताबें हिट होने लगती हैं, मगर उसकी जिंदगी का पन्ना खाली रहता है, एक दिन कबीर उसी आर्ट गैलरी में जाता है, जहाँ इवा से पहली बार मिला था, दीवार पर एक नई पेंटिंग लगी है – इवा की बनाई हुई, उस पेंटिंग में वही पुल है जहाँ दोनों साथ खड़े होते थे, और नीचे लिखा है “For Kabeer, who taught me to love again”, कबीर की आँखों से आंसू गिरते हैं, मगर होंठों पर मुस्कुराहट होती है, उसे समझ आता है कि मोहब्बत कभी खत्म नहीं होती, बस शक्ल बदलती है, इवा उसकी जिंदगी में नहीं, मगर उसके दिल में हमेशा रहेगी, और यही इवा की असली तौहफ़ा है, कहानी यहीं खत्म नहीं होती, क्योंकि कुछ मोहब्बतें कभी खत्म नहीं होतीं, वो बस किताबों में, यादों में और ख्वाबों में जिंदा रहती हैं…
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