🎬 मालिक (2025) फिल्म की पूरी कहानी – राजकुमार राव की धमाकेदार एंट्री
मालिक (2025) की कहानी की शुरुआत मिर्जापुर की तपती सड़कों, धूल उड़ाती गलियों और सत्ता की गंदी महक से होती है, जहां राघव (राजकुमार राव) अपने पिता की ईमानदारी का बोझ कंधों पर लादकर बड़ा हुआ, वो पिता जो सिस्टम की बेइमानी से टूटा, मां जो बीमार बिस्तर से सिसकती रही और राघव की आंखों में पलती वो आग – जो कहती थी, “अब बहुत हो गया…” दिन में सरकारी दफ्तर का छोटा मुलाजिम, रात में कलम से लड़ाई लड़ने वाला पत्रकार राघव जब माफिया, नेता और पुलिस की डील का वीडियो हाथ लगाता है, तब उसकी रगों में लहू की तरह गुस्सा दौड़ता है, पर सच्चाई का रास्ता कांटों से भरा – दोस्त डर के भाग जाते हैं, परिवार को धमकियां मिलती हैं, भाई को उठा लिया जाता है, पर राघव कसम खाता है, अब सिर्फ सच नहीं बोलेगा, अब वही बनेगा मालिक – सिस्टम का मालिक, डर का मालिक, और अपने लोगों की उम्मीद का मालिक। अपने जैसे टूटा-टूटा, बिखरा-बिखरा, पर दिल में आग लिए लोगों को जोड़कर वो बनाता है अपना गिरोह – कोई गुंडे नहीं, बल्कि सिस्टम से सताए हुए बागी, रिक्शेवाले से लेकर कॉलेज ड्रॉपआउट तक, पहलवान से लेकर फुटपाथ पर जीने वाले तक – सब मिलकर बनते हैं ‘मालिक की फौज’। दिन में वो लोग शहर की धड़कन बन जाते हैं, रात में सत्ता के खिलाफ आवाज। राघव अब सिर्फ नाम नहीं, नारा बन जाता है – मिर्जापुर की दीवारों पर लाल पेंट से लिखा जाने लगता है, “मालिक आ रहा है…” फिर शुरू होता है असली खेल – माफिया की गाड़ियों पर धावा, नेताओं की काली कमाई कैमरे में कैद, पुलिस कप्तान की करतूतें जनता के सामने – हर वार के साथ शहर जागता है, हर चोट के साथ राघव मजबूत होता है। बीच में दोस्त मारे जाते हैं, गद्दारी भी होती है, गोलियां भी लगती हैं, पर राघव की आंखों का शेर और दहाड़ता है – “मालिक वो नहीं जो कुर्सी पर बैठे, मालिक वो है जो दिलों में जगे।” क्लाइमेक्स में गंगा सिंह खुद आमने-सामने आता है – दोनों की आंखों में आग, शहर की सड़कों पर सनसनी, और टीवी पर लाइव चलता है वो वीडियो जो पूरे सिस्टम की चूलें हिला देता है – नेता गिरते हैं, कुर्सियां खाली होती हैं, पुलिस कप्तान सस्पेंड होता है, और राघव उस मिर्जापुर का मसीहा बन जाता है, जिसका सपना उसके बाप ने देखा था। मगर मालिक कुर्सी पर नहीं बैठता – फिल्म के आखिरी सीन में राघव अपनी फटी कमीज़, पुराने जूतों में चाय की दुकान पर खड़ा है, सिगरेट के धुएं के पार एक बच्चा पूछता है – “मालिक कौन होता है?” राघव होंठों पर हल्की सी मुस्कान लाकर कहता है – “जो डर के आगे झुके नहीं, वही मालिक होता है।” और कहानी खत्म होते-होते भी दिमाग में गूंजता है वो नाम – मालिक… जो कुर्सी का नहीं, लोगों की धड़कनों का मालिक बन गया। यही है मालिक की असली कहानी – मिर्जापुर की सड़कों से उठकर पूरे सिस्टम को नंगा करने वाले उस आदमी की, जो कहता है – सच्चाई की लड़ाई तलवार से नहीं, जिगर से लड़ी जाती है।
Post a Comment